गुरू दर्शन
परमात्मा एक है तो उससे परे और क्या रह जाता है । मानव शरीर को गुरू घासीदास जी ने एक मंदिर माना है । मानव ३ तत्वों का मेल है-
(१) स्थूल पदार्थ जिससे शरीर बना
(२) सूक्ष्म पदार्थ जिससे मन की रचना हुई
(३) आत्मा जो शरीर का जीव है तथा शरीर और मन दोनों का आधार है ।
पहली दोनों नाशवान है तीसरा अमर है । जिस प्रकार शरीर को जीवन देने वाली आत्मा है उसी प्रकार सारे संसार को सत्ता देने वाला परमात्मा है ।
सृष्ठि में देवता, मनुष्य, पशु, काल रचना (वनस्पति) चार खण्ड है जिसमें जीव है -
(१) जेरज - जो झिल्ली में लिपते हुए
(२) अंडज - जो अंडा से पैदा हुआ हो
(३) स्वेदज- जो पानी या पसीने से पैदा हुआ हो
(४) उष्मज - जो जमीन से पैदा हुआ हो ।
शरीर में पंचमहाभूत- पृथ्वी, आकाश, अग्रि, हवा, जल के साथ पांच तत्व-
(१) काम (२) क्रोध (३)लोभ (४) मोह (५) अंहकार;
अंतः करण - चार (१) मन (२) चित (३) बुद्धि (४) अंहकार
इन्द्रियां दस पांच ज्ञानेन्द्रियां (१) आंख (२) कान (३) नाक (४) मुख (५) त्वचा
पांच कर्मेन्द्रियां - १. हाथ २. पांव ३. मुख (बोलने वाली) ४. जननेन्द्रिय ५. गुदा
जगत सृष्टि कर्म - पंच तत्वों का निर्माण पहले हुआ ।
सहस दल कंवल तीन धारे है- सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण ।
छत्तीसगढ़ में गुरू घासीदास के आसपास कई मिथकों को बनाया गया है. इन मिथकों और विश्वासों और उसे अपने मृत को पुनर्जीवित करने की क्षमता की तरह कहानियों के लिए अलौकिक शक्तियों विशेषता के रूप में वह अपनी पत्नी और बेटे उनकी मृत्यु के बाद, और व्यापक रूप से सुना रहे हैं स्वीकार किए जाते हैं.
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