शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

छत्तीसगढ़ी कविता हिम्मत बढ़ाए के

सुनो सुनो संगी साथी, धर लो हथियार लाठी,
बैरी ल भगाबो चल जुर मिल के।
जागो जागो मोर बीर, दुश्मन आये हे तीर ,
बाहर खदेड़ो ओला मार मार के।
मरद के जात हावा, बटकी बटकी खात हावा,
गुन ल बतावा बासी नून चटनी के।
मरद के पूत हावा बड़े बड़े मुछ धरे,
दूध के लाज रखो मार पछार के।
या तो मुछ मुड़ाय के साड़ी पहिन डारो,
घर मे दुबकी बैठो चूड़ी पहिर के।
शबद के बाड़ लागे, भीतर के शेर जागे,
सबो अकुलाई कहे पुकार के।
बरछी अउ भाला धरो, तब्बल अउ फरसी धरो,
बैरी ल भगाबो चला मार मार के।
अतकी के बात सने, कोई नही मन गुने,
घर से निकलपरे बीर भेष धर के।
(साभार - नामायण ग्रंथ)