शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

सतनामी समाज का उदय छत्तीसगढ़ में ...

हरियाणा से छत्तीसगढ़ तक सतनाम की महिमा...

सन १६७२ में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया। यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पडा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। जिन लोगों का तप पूरा नहीं हुआ था वे अपनी जान बचा कर अलग अलग दिशाओं में भाग निकले थे। जिनमें घासीदास का भी एक परिवार रहा जो कि महानदी के किनारे किनारे वर्तमान छत्तीसगढ तक जा पहुचा था। जहाँ पर संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में रायपुर जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में हुआ था। ये बात बिल्कुल गलत है कि वे किसी दलित परिवार में पैदा हुए थे। चूंकि उन्होंने हिन्दु धर्म की कुरीतियों पर कुठाराघात किया था,इसलिये हिन्दुओं और ब्राम्हणो के एक वर्ग ने प्रचारित किया कि ये तो दलित है। क्यों कि ब्राम्हणों और मन्दिर के पुजारियों द्वारा हिन्दुओं के धार्मिक शोषण का विरोध करने के कारण उन्हें समाज से दूर करने का यही मार्ग उन लोगों को सूझा था। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है.
गुरू घासीदास जातियों में भेदभाव व समाज में भाईचारे के अभाव को देखकर बहुत दुखी थे। वे लगातार प्रयास करते रहे कि समाज को इससे मुक्ति दिलाई जाए। लेकिन उन्हें इसका कोई हल दिखाई नहीं देता था। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड पर समाधि लगा कर बैठ गये जहाँ उन्हें सत्य का साक्षात्कार हुआ था। उसके बाद लौटकर घर आए. उन्होंने यहां सतनाम पंथ की स्थापना की घोषणा की. इस बीच गुरूघासीदास ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।
गुरू घासीदास की शिक्षा
गुरु घासीदास जी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राम्हणों के प्रभुत्व को नकारा, और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। भगवान का दूसरा नाम सत्य है और सबका भगवान एक ही है। ईश्वर निर्गुण और अनन्त है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।
गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास जी के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था। गुरू घासीदास जी के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही गुरूघासीदास का जन्म दलित परिवार में नहीं हुआ था। उन्होंने भटके हुए लोगो को सतनाम पंथ के मध्यम से ईसाई होने से रोका और सतनाम पंथ का डंका बजाने पर हिन्दू धर्म के उच्च वर्ण के लोगो ने भी सतनाम पंथ ग्रहण किया है। सतनाम पंथ का दरवाजा सबके लिए खुला है.................लेकिन बीच में इस महान सतनाम पंथ का प्रचार प्रसार कमजोर पड़ा। जय सतनाम............

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  2. खूँटे जी सबसे पहले आप अपने वेब साइट से रमन जी को हटाइए आप लोग हर जगह राजनीति मे क्यो दाब जाते है क्या एटने सतनामी लोग दब्बू है सायद नहीं

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  3. यह सब आपका अपना विचार है या कोई प्रमाण भी है ?

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  4. परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी कोई संत नही थे बल्कि वे सत्पुरुष पिता आदि पिता का ईश्वरीय अवतारी पुरुष थे सतनामी समाज उनको ईश्वरीय अवतार के रूप में पूजते और मानते आ रहे है लेकिन कुछ लोग उसे एक संत और्समाज सुधारक बता कर उसके मान्यता को धूमिल करते है ये उचित नही है आज तक जितने भी लोग सतनामी समाज के ईस्ट गुरु जगत गुरु ,कुल गुरु परम पूज्यगुरु घासीदास बाबा जी के बारे में इन्टरनेट में लिखे है वे कही न कही दोसरे समाज के लोगों के द्वारा ही लिखा गया है अगर लोगों को उनके बारे में सही जानकारी लिखना ही है तो असली छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज और गुरु गोसाइयों से जानकारी लेकर ही लिखें,लिखने वाले लोग उनके बारे में अधूरी जानकारी ही लिखे है ,लोग सतनाम धर्म को लिख लिख के सतनाम पंथ बना दिए है जबकि परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी ने सतनाम धर्म चलाये थे न की कोई पंथ अतः लिखने वालों से मेरा अनुरोध है की परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा जी के बारे में सही सही और उचित बाते ही लिखे समाज को भ्रमित करने वाली बाते न लिखे --साहेब गुरु सतनाम

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