बुधवार, 2 दिसंबर 2020

कर्म सुधारो जीवन सुधरेगी

*होनी तो प्रबल है*
*सीता विवाह और राम का राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त में किया गया। फिर भी न वैवाहिक जीवन सफल हुआ न राज्याभिषेक।*
*जब मुनि वशिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया।*

*सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहूं मुनिनाथ।*
*लाभ हानि, जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ।।*

*अर्थात, जो विधि ने निर्धारित किया है वही होकर रहेगा। न राम के जीवन को बदला जा सका, न कृष्ण के। न ही शिव ने शती के मृत्यु को टाल सके, जबकि मृत्युंजय मंत्र उन्ही का आवाहन करता है।*

*इस लिए यदि अपने जीवन मे परिवर्तन चाहते हैं, तो अपने कर्म बदलें। आप के मदद के लिए स्वयं आपकी आत्मा और परमात्मा दोनों खड़े है। उसे पुकारें। वह परमात्मा ही आप का सच्चा साथी है।*
*परमपिता परमात्मा से ज्यादा शुभ चिंतक भला कौन हो सकता है हमारा ?*

*परीक्षा संसार की।*
*प्रतीक्षा परमात्मा की।*
*और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।*
                       
*लेकिन हम परीक्षा परमात्मा की।*
*प्रतीक्षा सुख की और समीक्षा दूसरों की करते हैं।*

सतनाम पंथ की विशेषता

सतनाम पंथ जिसे आजकल धर्म कहे जा रहे हैं  इनमें प्रमुखत: 4 शाखाएं है इनमे पहला 
नारनौल खत्री जाट आदि  दुसरा   मेवात  जाट  गुर्जर क्षत्रिय तीसरा  कोटवा शाखा में ब्राह्मण  ‌राजपूत हैं।  
सतनाम पंथ के चौथी  छत्तीसगढ शाखा में सहजयानी बौद्ध  शैव अधिकतर है इनमे   65 गोत्र हैं।
उनमें  ऋषि या ब्राह्मण  जैसा गोत्र हैं- भारद्वाज -भट्ट ,भतपहरी  
     धृतमंद - धृतलहरे 
     शाडिल्य - शोड्रे 
    जन्मादग्नि -जांगडे 
     मारकंडेय - मारकंडेय 
      कश्यप -  कोसरिया /कोसले 
    चतुरवेदानी ,टंडन , जैसे गोत्र मिलते हैं।
इसी तरह कुर्मी के बधेल ,आडिल , चंदेल आदि ।
राउत के रात्रे, करसायल , पाटले पहटिया , गहिरे गहिरवार गायकवाड़ आदि 
 तेली के गुरुपंच , सोनबोइर ,सोनवर्षा , सोनवानी इत्यादि। 
   सतनामी में सर्वाधिक तेली व राउत जाति के लोग है।
सत‌नाम पंथ एक जातिविहिन समुदाय हैं। इनमें सभी जातियों का समागम हैं।
     यहाँ गोत्र है जाति पुरी तरह विलिन हो गये हैं। 
कबीर पंथ में अब भी जातियाँ हैं और वहाँ रोटी -बेटी नहीं है बल्कि हिन्दु धर्म का अभिन्न अंग हैं।
सत‌नाम पंथ हिन्दू जरुर लिखते हैं पर न हिन्दू उन्हे हिन्दू मानते हैं न सतनामी स्वयं को हिन्दू धोषित करते हैं। 
         छत्तीसगढ़ के इस प्रमुख पंथ जिनकी संख्या ३०-४० लाख के आसपास है और कृषि मुख्य पेशा हैं।  वर्तमान में अनु जाति वर्ग में चिन्हाकित हैं। यह समुदाय अपनी पृथक सांस्कृतिक अस्मिता के लिए विश्व विख्यात हैं। सात्विक खान -पान, रहन- सहन और सत्यनिष्ठ जीवन शैली इनकी विशेषता हैं। अंग्रेज भी सतनामियों ‌की‌ उक्त जीवन शैली से बेहद प्रभावित रहे फलस्वरुप जब राजतंत्र का खात्मा हो रहे थे तब १८२० में इसके धर्म गुरुघासीदास के पुत्र गुरुबालकदास को राजा धोषित कर १६ गांव समर्पित किए तथा इस समाज से  81 खास लोगो को  मालगुजार  बनाए व  262  गौटिया पंजीकृत किए।
      इस तरह देखे तो छत्तीसगढ़ में यह समाज बेहद प्रभावशाली रहा है। आरंभ से ही सुसंगठित रहा है। तथा शासन प्रशासन में सक्रिय  भागीदारी रहा है। बावजूद शांति प्रिय  संत सदृश्य समाज जिनके साथ आरंभ से अमानवीय व्यवहार होते आ रहे हैं। आजादी के आन्दोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर इसलिए किए कि अपेक्षित बदलाव आएगा। पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रही  कि इस  समाज  के साथ निरंतर अपमान जनित व्यवहार से क्षुब्ध आक्रोश से  अधो:पतन की ओर अग्रसर हैं।  इनके साथ आज भी दोयम दर्जे का व्यवहार होते आ रहे हैं। 
   अपनी अस्मिता  की प्रति जब जब यह समाज आन्दोलित होते हैं। उसे कुचल दिए जाते हैं। और गाहे बगाहे अवहेलना जनित व्यवहार किए जाते हैं। ताकि इनमे आत्मविश्वास जागृत न हो सके ।इनके लिए  सामाजिक तिरस्कार का धातक हथियार इस्तेमाल कर सडयंत्र  किए जाते रहे हैं। 
     जय सतनाम
डॉ. अनिल भटपहरी