शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

लोहर ने धर्मांतरण को बढ़ावा दिया


: शुरुआत का शहर  

लोहर 31 मई को राज्य की वर्तमान राजधानी रायपुर पहुंचे। कर्नल बाल्मैन की सलाह, मदद और समर्थन के साथ, लोहर एक मिशन स्टेशन स्थापित करने के लिए रायपुर और बिलासपुर के बीच स्थित 1544 एकड़ भूमि खरीदने में सक्षम थे। [14] चूंकि यह मानसून का मौसम था, भारी बारिश ने एक महीने से अधिक समय तक लक्ष्य क्षेत्र में मिशन कार्य शुरू करने को रोक दिया। इस बीच लोहर ने सतनामी लोगों के धर्म और समाज के बारे में जाना। [15] सतनामी मूल रूप से चमार थे , चमड़े के श्रमिक जिन्होंने चमार गुरु घासीदास की शिक्षाओं का पालन किया थासतनाम पथ के सुधारक और संस्थापक, सच्चे नामर्स (सत नामी) के संप्रदाय। गुरु घासीदास (1785-1850) ने उन्हें मूर्तिपूजा त्यागने, सतनाम (सच्चा नाम) के रूप में भगवान की पूजा करने की शिक्षा दी थी, जब तक कि यह प्रकट न हो जाए, और यह रहस्योद्घाटन उनके लिए एक टोपीवाला, एक टोपी वाला व्यक्ति लेकर आएगा। एक यूरोपीय ईसाई या एक ईसाई मिशनरी का जिक्र)। [16]

रायपुर में रहते हुए, लोहर बेकार नहीं बैठे, बल्कि कई गतिविधियों में लगे रहे। वह रविवार को सैन्य अधिकारियों के लिए सेवाओं का संचालन करके उनकी सेवा कर रहा था। उन्होंने रायपुर जेल में बंदियों से मुलाकात कर जेल मंत्रालय का संचालन किया। उन्होंने एक स्कूल भी शुरू किया जहां वे दैनिक रूप से अन्य प्राथमिक विषयों के साथ-साथ ईसाई शिक्षाओं को पढ़ाते थे। इस स्कूल के लोहर के छात्र बाद में विसरामपुर मिशन स्टेशन में उनके सहयोगी बन गए और धार्मिक शिक्षक के रूप में सेवा की। [17]इस प्रकार रायपुर में संडे चर्च मिनिस्ट्री, स्कूल फॉर एलीमेंट्री एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर (जो शायद साथ-साथ चलता था), जेल मिनिस्ट्री और चेला बनाने (धर्मांतरित लोगों को सलाह देने) की नींव रखी गई थी। रायपुर विभिन्न मिशन गतिविधियों की शुरुआत का उनका शहर था। ये छोटे अग्रणी प्रयास थे और दुर्भाग्य से कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। रायपुर स्कूल में उनके कई छात्र सतनामी पृष्ठभूमि से आए और उन्हें भंडार में मुख्य सतनामी गुरु से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेवरेंड लोहर तब एक वार्षिक सतनामी उत्सव गुरुपूजा के दौरान भंडार गए थे और उनका बहुत गर्मजोशी, सम्मान और स्नेह के साथ स्वागत किया गया था। उनके लिए, यह वही व्यक्ति था जिसके बारे में गुरु घासीदास ने बताया था। [18]

बिसरामपुर: आराम का शहर

लोहड़ उस जमीन पर चले गए जिसे उन्होंने बारिश बंद होने पर खरीदा था। वहां, वे शुरू में घने जंगल और जंगली जानवरों के खतरों के बीच झोपड़ियों में रहते थे। धीरे-धीरे एक बंगला बनाया गया और उस जगह का नाम आराम का शहर बिसरामपुर रखा गया। यह लोहर के मध्य भारत मिशन का मुख्यालय बन गया, जिसे तब छत्तीसगढ़ मिशन (जीईएमएस के भीतर) के रूप में जाना जाता था। पहला क्रिसमस यहीं मनाया गया था और बताया जाता है कि इस कार्यक्रम में लगभग 1000 सतनामियों ने भाग लिया था। अगले रविवार को हुए पहले बपतिस्मा ने सतनामियों के बीच भारी विरोध पैदा कर दिया। स्थिति अत्यंत शत्रुतापूर्ण हो गई। सतनामी ईसाई नहीं बनना चाहते थे। क्या यह सतनामपंथ में केंद्रित उनके व्यक्तिगत सामाजिक-धार्मिक ढांचे के कारण था या परिवार के सदस्यों या ग्रामीणों के किसी दबाव के कारण, आगे की खोज का विषय बना हुआ है। यह निश्चित रूप से स्पष्ट है कि वे अपना धर्म नहीं बदलना चाहते थे। लोहर को किसी भी हाल में यह अहसास हो गया था कि वे अपना सतनामी पंथ नहीं छोड़ेंगे। मान-सम्मान की जगह उत्पीड़न और विरोध ने ले ली। एक जन आंदोलन देखने का लोहर का सपना लगभग पूरी तरह से तबाह हो गया था। विश्राम का नगर अशांति का स्थान बन गया था! यह चुनौतियों और संघर्षों का स्थान भी बन गया। हालाँकि, लोहर ने आशा नहीं छोड़ी और बीमारों को उपदेश देना, सिखाना और चंगा करना जारी रखा।[19] इस बीच कुछ और मिशनरी आए और लोहर में शामिल हो गए लेकिन स्वास्थ्य कारणों से जारी नहीं रह सके। लोहर निरुत्साहित या निराश हुए बिना परिश्रम करता रहा। और यद्यपि कोई जन आंदोलन नहीं था, व्यक्तिगत धर्मांतरितों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ी। 15 फरवरी, 1873 को परमेश्वर के इस जन के लिए खुशी फिर से बढ़ गई जब उन्होंने छत्तीसगढ़ में पहले चर्च की नींव रखी। 29 मार्च, 1874 को बिसरामपुर का इमैनुएल चर्च समर्पित किया गया था। [20] चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया के प्रबंधन के तहत चर्च का अस्तित्व बना हुआ है।

चर्च के समर्पण के तुरंत बाद, लोहर को नए मिशनरियों की चुनौतियों और उनकी गलतफहमियों का सामना करना पड़ा। युवा मिशनरियों ने बड़ी संख्या में धर्मान्तरित और एक आरामदायक कार्य क्षेत्र की अपेक्षा की थी। शत्रुतापूर्ण सतनामियों और कभी-कभी होने वाले छोटे-छोटे बपतिस्मा और अन्य बातों के साथ-साथ शिक्षा, सुसमाचार प्रचार और स्वास्थ्य देखभाल के छोटे-छोटे कार्यों को देखकर वे निराश थे। इसके अलावा, लोहर एक सख्त व्यक्तित्व के थे। नतीजतन, नए मिशनरियों ने लोहर और उनके नेतृत्व को छोड़ दिया। लेकिन लोहर ने मसीह के लिए सतनामियों को जीतने की आशा रखी। यह आशा कुछ हद तक बाद की अवधि में क्रिश्चियन चर्च (डिसिपल्स ऑफ क्राइस्ट) मिशन के साथ महसूस की जानी थी। मसीह के शिष्य, उन्नीसवें का फलसंयुक्त राज्य अमेरिका में शताब्दी पुनरुद्धार आंदोलन (स्टोन-कैंपबेल आंदोलन) ने 1885 में बिलासपुर (बिसरामपुर के पास) में अपना मिशन स्टेशन स्थापित किया। डोनाल्ड मैकगावरन इस मिशन एजेंसी के एक प्रसिद्ध मिशनरी थे। [21]

लोहर ने अपने "निर्भीक विश्वास, साहस और भक्ति ..." के साथ अपने मिशन को जारी रखा [22] मिशन कार्य के पहले दशक के अंत तक इमैनुएल चर्च ने मिशन के सबसे महत्वपूर्ण विकास को चिह्नित किया। एक समान रूप से महत्वपूर्ण उपलब्धि जूलियस लोहर का मार्क ऑफ गॉस्पेल का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद था। स्थानीय बोली में उपलब्ध होने वाला यह बाइबिल का पहला भाग था। [23] इस समय के दौरान, पिता-पुत्र टीम (ऑस्कर और जूलियस) ने शुरुआती ईसाइयों को पढ़ाने में काफी समय दिया। मिशन के काम की वृद्धि स्थिर थी।

बिसरामपुर, एक बड़े मिशन परिसर की तरह, सभी शुरुआती धर्मान्तरितों का घर था। उनमें से कुछ बगल के गणेशपुर गांव में भी रहते थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर का तबादला रायपुर से कर दिया गया था, जहां पहले काम शुरू हुआ था। 1883 तक बिसरामपुर में नए ईसाई विश्वासियों की संख्या बढ़कर 175 हो गई थी, और अगले सात वर्षों में यह संख्या कुल 258 व्यक्तियों तक पहुँच गई। [24] 1884 तक, बिसरामपुर के अलावा, तीन और मिशन स्टेशन थे - रायपुर, बैतालपुर, और परसाभादर। ईसाइयों की संख्या 1125 (सभी स्टेशनों को मिलाकर) पहुंच गई थी। ग्यारह स्कूल, 31 शिक्षक और 12 कैटेचिस्ट थे। [25] अद्भुत विकास!

मंगलवार, 21 जून 2022

रुद्राक्ष यात्रा एक नजर में...

रुद्राक्ष यात्रा 2 जून से  8 जून 2022

छत्तीसगढ़ प्रांत के रायगढ़ जिले में सारंगढ़ विकासखंड जो कि महानदी के किनारे बसा हुआ है। धन- धान्य से समृद्ध है, साथ ही धार्मिक- आध्यात्मिक दृष्टि से भी संपन्न है। अनेक प्राचीन मंदिर है। किंतु हिंदू समाज की कुरीति ऊंच - नीच का भेद भाव भी व्याप्त है। जिसके कारण समाज समरस नहीं हो पाता। आपस में सौहार्द पूर्ण वातावरण नहीं है। इसका लाभ उठाकर ईसाई मिशनरी संस्थाएं समाज में फुट पैदा कर, अंधविश्वास और प्रलोभन के द्वारा मतान्तरण का का कुचक्र चला रही है। आज भी सारंगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में छुआछूत व ऊंच-नीच की भावना व्याप्त थी और विधर्मी शक्तियां इनका फायदा उठा कर क्षेत्र में मतांतरण का कुचक्र चला रहे थे इस वजह से हिंदू समाज की विभिन्न जातियों में बड़ी दूरियां थी। संघ परिवार के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को यह बात बहुत चुभती थी। धर्म जागरण समन्वय की बैठक में यह विषय अक्सर कार्यकर्ता उठाते थे सतनामी समाज के लोग धर्म जागरण के अच्छे निष्ठावान कार्यकर्ता है इन परिस्थितियों में धर्म जागरण समन्वय क्षेत्र प्रमुख रेवाराम जी के दिमाग में "रुद्राक्ष यात्रा" निकालने का विचार आया और इसे मूर्त रूप देने में जुट गए। सारंगढ़ प्रवास किया, बैठकें की और स्थानीय कार्यकर्ताओ को आगे ला कर कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई गई। धीरे-धीरे अन्य कार्यकर्ता भी इस अभियान में जुटते गए और यात्रा चल पड़ा। लोग जून महीने की तपती धूप व भीषण गर्मी में सभी भेद भाव भूलकर रुद्राक्ष भगवान का स्वागत वंदन करने निकल पड़े। महामंडलेश्वर श्री सुरेशानंद सरस्वती जी के हाथों से निःशुल्क अभिमंत्रित रुद्राक्ष लेकर श्रद्धा, भक्ति व समर्पण भाव से पुजन करने लगे। सुबह 9 बजे से यात्रा चलती तो रात्री 10 बजे तक श्रद्धालु पूजन करते रहे।


रुद्राक्ष यात्रा एक नजर में...

1.  यात्रा 7 दिनों में 60 ग्राम एवं शहर के 13 बस्तियों तक गई।

2.  रुद्राक्ष यात्रा सफल बनाने के लिए एक आयोजन समिति बनाकर 35 कार्यकर्ता लगातार कार्य करते रहे।

3.  ग्राम वासियों ने अपने अपने घर के मुख्य द्वार पर कलश सजाकर रंगोली बनाकर दीपक लगाकर स्वागत किए।

4.  यात्रा में महिलाओं और बच्चों की उपस्थिति देखते ही बनती थी।

5.  सभी भेदभाव मिटाकर समाज को एक सूत्र में पिरोने वाली इस यात्रा से राजनीतिक नेता भी अछूते नहीं रहे।

6.  यात्रा के दौरान 51 हजार रुद्राक्ष के दाने निशुल्क वितरण किए गए।

7. अयोजन समिति के 15 कार्यकर्ता यात्रा में 7 दिन तक साथ रहे।

देश में पहली बार, रुद्राक्ष आए द्वार द्वार

रुद्राक्ष यात्रा में उमड़ा जनसैलाब 


सभी भेद मिटाने और समाज का आत्म गौरव जगाने निकली यह यात्रा सारंगढ़ क्षेत्र की सुख समृद्धि एवं प्रगति के लिए सभी के बीच में रुद्राक्ष यात्रा निकालने का निश्चय किया गया इस हेतु एक आयोजन समिति बनाई गई।
 2 जून 2022 को महानदी मध्य स्थित शिव मंदिर टीमरलगा से रुद्राक्ष यात्रा निकली और समपन 8 जून 2022 को राजापारा सारंगढ़ में हुई।

 
यात्रा के पहले दिन टीमरलगा, गुडेली, गोडम एवं रेड़ा में जन सैलाब उमड़ पड़ा जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ता गया काफिला आता गया लोग स्व प्रेरित होकर यात्रा के साथ चलने लगे। जगह जगह पर घरों के द्वार में कलश सजाए गए महिलाओं ने आरती उतारकर रुद्राक्ष भगवान की पूजा की और महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 श्री सुरेशानंद सरस्वती जी ने सभी को निःशुल्क रुद्राक्ष प्रदान किए। कुछ स्थानों पर केवल भ्रमण का कार्यक्रम था लेकिन लोगों की उमड़ती हुई भीड़ को देखते हुए इसे सभा में तब्दील कर दिया गया इस कार्य के लिए समाज के सभी वर्ग व समूहों को जोड़ा गया। धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक संगठनों का भरपूर सहयोग मिला


रुद्राक्ष यात्रा को मिली ऐतिहासिक सफलता


 
धनवंतरी पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 श्री सुरेशानंद सरस्वती जी महाराज पूरे समय यात्रा में रहे
 आर्य समाज के पूज्य संत श्री राकेश आचार्य एवं घर वापसी अभियान प्रमुख श्री प्रबल प्रताप सिंह जूदेव
 धर्म जागरण समन्वय क्षेत्र प्रमुख आदरणीय श्री रेवाराम भाई 
 धर्म जागरण समन्वय छत्तीसगढ़ प्रांत प्रमुख श्री राजकुमार चंद्रा जी
 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रायगढ़ जिला प्रचारक भैया ईश्वरीलाल कुंभकार जी 

 भाजपा छत्तीसगढ प्रदेश संगठन महामंत्री श्री पवन साय जी 

 भाजपा रायगढ़ जिला अध्यक्ष श्री उमेश अग्रवाल जी, रायगढ़ राज परिवार के युवराज जिला पंचायत सदस्य श्री देवेंद्र प्रताप सिंह जी, धर्म रक्षा वाहिनी प्रांत प्रमुख श्रीमती राजमती चतुर्वेदानी जी,
धर्म जागरण प्रांत के पदाधिकारी श्री आनंद दास महंत जी सहित सभी प्रमुख कार्यक्रम में शामिल हुए।


रुद्राक्ष अर्थ है रुद्र +अक्ष अर्थात भगवान शिव के आंसू से जिसकी उत्पत्ति हुई है। शिव पुराण में कहा गया है जो रुद्राक्ष धारण करता है वह स्वयं शिव मय हो जाता है।

वैदिक काल से ही अलौकिक शक्ति से युक्त बीज रुद्राक्ष का उपयोग आध्यात्मिक तथा तांत्रिक साधना कोपओं में किया जाता रहा है। भारतीय ज्योतिष में रुद्राक्ष की विशेष उपयोगिता है ग्रहों के दुष्प्रभाव को नष्ट करने का यह एक अचूक उपाय है। इसे धारण करने वाले का भूत प्रेत आदि की कोई समस्या नहीं रहती वह निर्भय होकर कहीं भी भ्रमण कर सकता है।

आयुर्वेद के ग्रंथों में रुद्राक्ष को महा औषधि के रूप में वर्णित किया गया है इसके वृक्ष की छाल पुष्प व बीज से हृदय रोग श्वास रोग की औषधियां बनाई जाती है। अनेक प्रकार के मनोरोगो का भी इलाज होता है जैसे तनाव, चिंता, एकाग्रता का अभाव इत्यादि इस प्रकार आदिकाल से ही रुद्राक्ष सिद्धि दायक, पाप नाशक, पुण्य वर्धक, रोग नाशक तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। रुद्राक्ष का यह दैवीय वृक्ष अखंड भारत नेपाल से लेकर जावा, सुमात्रा में भी पाया जाता है।
 
अपना जनजाति समाज प्रकृति पूजक है और रुद्राक्ष भी प्रकृति का अनमोल प्रसाद है जिसकी महिमा अब सारा विश्व जानने लगा है। यह अपनी पुरातन संस्कृति का प्रतीक भी है इसी से प्रेरित होकर पूर्व में सारंगढ़ क्षेत्र में रुद्राक्ष महाभिषेक का आयोजन संपन्न हुआ था जिसमें 1500 जजमानो ने जोड़े में सम्मिलित होकर अभिषेक किया था। इसी कड़ी में रुद्राक्ष को गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाने के लिए रुद्राक्ष यात्रा का यह आयोजन किया गया

जिसमें महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 संत श्री सुरेशानंद सरस्वती जी से प्रेरणा लेकर उनकी उपस्थिति में रुद्राक्ष यात्रा का सात दिवसीय आयोजन किया गया।

यह यात्रा 7 दिनों में 60 गांव का भ्रमण की जिसकी शुरुआत 2 जून 2022 को टीमरलगा स्थित शिव मंदिर से हुई इस दौरान घर वापसी अभियान प्रमुख हिंदू कुलदीपक आदरणीय प्रबल प्रताप सिंह जूदेव जी एवं आर्य समाज के युवा संन्यासी आचार्य राकेश जी ने टीमरलगा ग्राम में सभा की और श्रद्धालुओं को निशुल्क रुद्राक्ष प्रदान किए।

यात्रा का गुडेली में भव्य स्वागत हुआ माताओं बहनों द्वारा आरती पूजन की गई बच्चे व बूढ़े सभी ने महामंडलेश्वर जी के हाथों से निशुल्क रुद्राक्ष का प्रसाद प्राप्त किया

दोपहर का भोजन बंजारी में हुआ और हिररी ग्राम का भ्रमण किया गया। रुद्राक्ष यात्रा का गोड़म में अनेक स्थानों पर पूजन किया गया सुवाताल में माताओं बहनों द्वारा घर के मुख्य द्वार पर कलश जलाकर यात्रा का स्वागत किया गया। हरदी ग्राम की बीच बस्ती में यात्रा की सभा हुई और रात्रि का भोजन ग्राम रेडा में हुआ जहा पर यात्रा देर रात को पहुंची 10 बजे रात्रि तक श्रद्धालु शिव भक्त यात्रा का इंतजार करते रहे। इसी के साथ यात्रा का पहला दिन का विश्राम हुआ।
रूद्राक्ष यात्रा रूट चार्ट
2 जून 2022
1.टीमरलगा = प्रारंभ सुबह 10.00 बजे 
2.गुडेली      = भ्रमण  11.30 
3.बंजारी     = भ्रमण स्वागत दोप. 2.00 
4.गोडम      = भ्रमण पूजन दोप. 2.30 
5.हिररी       = भ्रमण दोप. 3.00 
6.सुवाताल  = भ्रमण पूजन संध्या 4.00 
7.हरदी       = भ्रमण पूजन संध्या 4.30 
8.रेडा         =  पूजन संध्या 5.30 
9.कोतरी : संध्या 7. 00 बजे  विश्राम

3 जून 2022
00. कोतरी   = प्रारंभ सुबह 9.00
10. उधरा     = पूजन 9.30
11.पचपेड़ी   = भ्रमण 10.00
12.सुलोनी    = भ्रमण 10.45
13.सुंदराभाटा= भ्रमण 11.30
14.उलखर : दोपहर 12.30 विश्राम 
15.छोटे गंतुली = भ्रमण 2.30
16.बड़े गंतूली = भ्रमण 3.15
17.जशपुर     = भ्रमण 5.00
18.अंडोला     = भ्रमण 6.00 विश्राम
19.दहीदा : रात्रि 7.30 

4 जून 2022
00. दहीदा    = प्रारंभ सुबह 9.00
20.मल्दा     = भ्रमण 9.15
21.पासीद।  = भ्रमण 10.15
22.सिंघनपुर = भ्रमण 11.15
23.भाठागांव = भ्रमण 12.15
24.कोसीर : दोपहर 12.45 विश्राम
25.कुम्हारी = भ्रमण 3.15
26.रक्सा         = भ्रमण 4.15
27.चनामुंडा     = भ्रमण 5.30
28. लेंधरा       = भ्रमण 6.30
29.साल्हे : रात्रि 7.30 विश्राम 

5 जून 2022
00. साल्हे       = प्रारंभ सुबह 8.30
30.परसदा बड़े = भ्रमण 9.00
31.टाड़ीपार    = भ्रमण 10.00
32.खजरी     =  भ्रमण 10:30
33.पिकरी     = भ्रमण 11:15
34.पहांदा     = भ्रमण 11:45
35.डोमाडीह = भ्रमण 12:15
36.केडार : दोपहर 12:45 विश्राम
 37.नावागांव    = भ्रमण 3:45
38.लिमगांव      = भ्रमण 5:00
39.खोखसीपाली= भ्रमण 6:15
40.कटेली          = रात्रि 7:30 विश्राम 

6 जून 2022
00. कटेली     = प्रारंभ 8:30
41.सरायपाली= भ्रमण 8:45
42.सोंडका     = भ्रमण 9:30
43.नवापारा    = भ्रमण 10.15
44.कवलाझर = भ्रमण 11:00
45.बीरसिंहडीह= भ्रमण 11:30
46.अमाकोनी। = भ्रमण 12:30
47.बटाऊपाली : दोपहर 1:00 विश्राम 
48.सालर         = भ्रमण 3:00
49.छातादेई      = भ्रमण 3:30
50.अमलीपाली = भ्रमण 4:00
51.कपरतूंगा    = भ्रमण 4:30
52.रोहिना        = भ्रमण 5:45
53.बनहर        = भ्रमण 6:45
54.सालर : रात्रि 7:30 विश्राम 

7 जून 2022
00. गोडा       = प्रारंभ  8:30
55.बघनपुर   = भ्रमण सुबह 8:45 
56.बंधापाली  = भ्रमण 9:15
57.फर्सवानी   = भ्रमण 10:00
58.सिंगारपुर  = भ्रमण 10:45
59.घौटला     = भ्रमण 11:30
60.अमझर   = भ्रमण 12:00
61.नवरंगपुर : दोपहर 1:00 विश्राम 
62.खर्री         = भ्रमण 4:00
63.मौहाढूंढा   = भ्रमण 5:00
64.अमेठी       = भ्रमण 6:15
65.दानसरा : रात्री 7:00 विश्राम 

8 जून 2022
66. सारंगढ़ प्रवेश प्रातः 9:30
67.कमला नगर 
68.फुलझरिया 
69.भट्ठी चौक त्रिनाथ गुरुजी घर के पास 
70.सम्राट चौक 
71.छोटे मठ 
72.नंदा चौक 
73.सदर बाजार रोड़ 
74.पोस्ट ऑफिस चौक  
75.पुराना बस स्टैंड 
76.नया तालाब रोड़ 
77.आजाद चौक 
78.भारत माता चौक 
79.माटी तेल टंकी चौक  
80.बैंक ऑफ बड़ौदा 
81.जय स्तंभ चौक 
82.केडिया चौक 
83.बीड़पारा 
84.गुप्ता होटल 
85.पैलेस रोड़ 
86.पैलपारा 
87.राजा पारा यात्रा समापन एवं पूजा स्थल

विषेश आग्रह पर उच्चभिट्ठी ग्राम पहुंची यात्रा

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

रुद्राक्ष यात्रा के लिये स्लोगन

जिसको ऋषि-मुनियों ने धारा,
वह रुद्राक्ष है जग से न्यारा।।

रुद्राक्ष दिव्य प्रसाद है,
शिव जी का आशीर्वाद है ।।

हर ग्राम रुद्राक्ष मय होगा,
हर व्याधि से निर्भय होगा ।।

हर गांव घर घर जाएंगे,
रुद्राक्ष की महिमा सुनाएंगे ।।

रुद्राक्ष की महिमा न्यारी है,
अलौकिक और चमत्कारी है ।।

रुद्राक्ष की है अद्भुत माया,
निर्मल मन निरोगी काया ।।

जो रुद्राक्ष से करता स्नेह,
रहे निरोगी उसका देह ।।

जो फेरे रुद्राक्ष की माला,
ना व्यापे रोग की ज्वाला ।।

दाई भुजा बांधे जो वीरा,
संकट कटे मिटे सब पीरा ।।

इसे कुमारी घर में लावे, 
तो मन वांछित वर पावे ।। 

विधिपूर्वक करे जो धारण,
हो उसके हर कष्ट निवारण ।।

श्रद्धा सहित रुद्राक्ष जो धारे,
उसके हो जाए वारे न्यारे ।।

जिस घर में हो रुद्राक्ष का पूजन,
सुख संपत्ति खेले नित्य आंगन ।।

यह रुद्राक्ष हैं मंगलकारी,
संकट मोचन भवभय हारी ।।

सृष्टि सृजन का साक्ष्य,
यह दिव्य महा रुद्राक्ष ।।

जब भी यह रुद्राक्ष गहो,
ओम नमः शिवाय कहो ।।

हाथ गले या कमर में धारों,
इस रुद्राक्ष से कष्ट निवारो ।।

आओ सब मिलकर अपनाएं,
इस रुद्राक्ष का लाभ उठाएं ।।

यह रुद्राक्ष औषधि विख्यात है,
धरती का यह पारिजात है ।।

है रुद्राक्ष अलौकिक फल,
इससे मिले बुद्धि और बल ।।

तन मन को ऊर्जा देता है,
पाप ताप को हर लेता है ।।
रुद्राक्ष भगवान की जय