रविवार, 1 दिसंबर 2013

सतलोक से सारंगढ़ में आगमन...

गिरौदपुरी से सतखोजी का, सारंगढ़ में आगमन... 

       ईश्वर के सच्चे खोजी सत्य का हमेशा स्वागत करते है जो जीवित ब्रम्हा, सर्व शक्तिमान, सृष्टिकर्ता सतपुरुष के करीब पहुचता है। सतपुरुष केवल धर्म, संस्कार, जाती-पाति या पन्थ के बारे में नही है ना ही कुछ किताबों में लिखी कथाओं में है और ना ही रोज-रोज कुछ मन्त्रों का तोते के समान जाप करने या नाहक योगसाधना करने से भगवान प्राप्त होता है। एक सच्चाई हमेशा याद रखिये कि जिस नाम की आप पूजा करते है वही आपको प्राप्त होगा और उसके साथ आपको अनंत काल तक साथ रहना पड़ेगा।  "निर्गुण ते एही भांति बड़, नाम प्रभाऊ अपार। कहऊँ नाम बड़ राम तें, निज विचार अनुसार ।। ", "ब्रह्म राम तें नामु बड़, वरदायक वरदानी । राम चरित्र सतकोटि महं, लिय महेश जियंजानि  ।।  " उक्त चौपाई के अध्ययन से दलित समाज के लोगो ने नाम के महत्त्व को गम्भीरता से समझा है और इसका प्रचार-प्रसार भी बड़े पैमाने पर किया है, धर्म के इस पुनीत कार्य में  सतनामी, सूर्यवंशी व रामनामी समाज के संत जनों ने सर्वाधिक समर्पित भाव से नाम का गुणगान किया हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लोकप्रिय ग्रन्थ  "श्री राम चरित-मानस" कि जो रचना की है, वह हिन्दू समाज के लिए एक बहुत बड़ी देन है। क्योंकि इस विश्वविख्यात ग्रन्थ "रामायण" के द्वारा भगवान श्री रामचन्द्र जी का पावन चरित्र हमारी सभ्यता व संस्कृति पर बड़ा भारी प्रभाव डालता है। कहने का मतलब है की जिन महापुरुषों को इसके आदर्शों पर चलने का शुभ अवसर मिला है, उनका जीवन धन्य है।
पंडित मुनीराम जी  
इस भव सागर में नाम अनेक है परन्तु अनेक नाम में से केवल एक प्रिय नाम 'राम' को ही चुनना है और उसी के सहारे जीवन जीना है। रामनामी समाज के संतों (पूर्वजों) ने राम नाम के महत्त्व को समझा और इसे सत्य नाम मानकर अपने शरीर में लिखा लिया और आस्था का अनूठा उदाहरण मानव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है।
छत्तीसगढ़ में सर्व प्रथम परम पूज्य गुरु घासीदास जी ने सत्य की महिमा को जाना है, और सत्य को जागृत कर मानव कल्याण के लिए सत्य धर्म का स्थापना कर अपने अनुयाइयों को सत्य मार्ग पर चलने को प्रेरित किया है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि गुरु घासीदास जी को सत्य का ज्ञान सारंगढ़ प्रवाश के दरमियान प्राप्त हुआ था, कहते है कि जब गुरु जी जगन्नाथ पूरी कि यात्रा पर जा रहे थे तब वे सारंगढ़ में विश्राम किये थे तथा यहाँ से वापस हो गए या कहीं चले गए इसका ज्यादा विवरण किसी ग्रन्थ में नहीं लिखा गया है। यद्यपि कवि श्री सुकुलदास घृतलहरे व कवि श्री मनोहरदास न्रिशिंह ने इस विषय पर कुछ वर्णन जरुर किया है जिससे हमे उर्जा मिलती है और नये श्रृजन का अवसर प्राप्त होता है।
अब मै आपको बताता हु कि गुरु घासीदास जी को सत्य का ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ होगा ?. सुकुलदास घृतलहरे जी ने लिखा है कि  "गाँव लोगन के संग में, घसिया चला विदेश । ननकू मुनकू भी चले, सहते भूख क्लेश।। " घासीदास जी बेहद गरीबी में अपना जीवन गुजार रहे थे गाँव के लोगो ने कहा कि खाली बैठे हो इससे अच्छा है कि जगन्नाथ पूरी के दरसन कर के आ जाओ घासीदास अपने दोनों भाइयों के साथ यात्रा पर निकले। "जगन्नाथ चले गोसाई, दुःख भरी फरियाद सुनाई " यात्रा पर जाते समय गुरु ने सोचा था कि पूरी जा कर भगवान को अपनी ब्यथा सुनाऊंगा और मन ही मन बेहद उत्साहित थे। " रेंगत रद्दा सारंगढ़ जावै, पेड़ तरी सब जेवन बनावै " गिरौदपुरी से चलते हुए सारंगढ़ पहुचते तक शाम हो गया होगा और सभी यात्री तालाब किनारे पेड़ के पास भोजन बनाने व विश्राम करने ठहर गये। थकावट के कारण भोजन के बाद सब सोने लग गये , लेकिन गुरु घासीदास के आँखों से नींद गायब था वे रात्रि में जागते रहे इसी समय सारंगढ़ राज के खड़ाबंद तालाब के पार में गुरु मल्गादास जी 'खड़गेश्वरनाथ भुई फोड़ महादेव' के पास अपने शिष्यों को गुप्त ज्ञान बता रहे थे जिसे गुरु घासीदास जी छुपके सुनने लगे थे। " श्री गुरु मल्गादास जी, करत रहे गुणगान । आत्मा परमात्मा कर, साधन करत बखान।।, श्री गुरु मल्गादासे सामी, करत रहे प्रवचन नामी। "  मल्गादास के गुप्त ज्ञान को गुरु ने छुपके सुन तो लिया पर इसके भेद को पूरी तरह समझने के लिए वे मल्गादास जी से भेट करने चले गए जबकि उनके भाई और साथी वही सोते रहे । छत्तीसगढ़ के महान कवि श्री मनोहरदास जी ने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि :- " कलियुग मह पुनि सत्यकर, कैसे भयो प्रचार । ते सब कथा बुझाई के, कहहु सहित विस्तार ।। "

सत खोजी जग आइके , कहहि विविध विधि ज्ञान ।
सत्य पुरुष जेहि भेजियो , करन जीव कल्यान।।

सतलोक से सतखोजी आये,निज इच्छा मय भेष बनाये।
रेंगत सारंगढ़ पगुधारा , जाई पहुचे खड्बंदताल  के पारा।
कहे घसिया सुनो सतनामा, पुरुष पठायो तुम्हरे धामा।

घासीदास जी ने मल्गादास से गुप्त ज्ञान सतनाम कि दीक्षा ली और नाम को सिद्ध करने के लिए छाता पहाड़ के जंगल में चले गए और छह महीने तक कठोर तप किये है। पूरा विवरण अगली बार लिखूंगा तब तक के लिए जय सतनाम ...