छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदासजी निर्गुण ब्रम्ह, निराकर, निरंजन, सतनाम, सतपुरुष, को आधार मानते थे
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मंगलवार, 1 नवंबर 2011
एक कविता दिलसे....
मनखे मनखे ला काय दिही
जोन दिही उप्पर वाला दिही
मोर दुश्मन ही तो जज हे
का ओ मोर हक म फैशला सुनाही
जिनगी ल देख गौरसे
एकर दर्द तोला रोवा दिही
हमला पूछ संगी कोन होतहे
बैरी के घलो दिल पिघल जाही
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