प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में जागरण चेतना के विकास के साथ हूआ है और तबसे ही मनुष्य सत्य और असत्य को समझते आ रहा है. सतनाम पंथ का अभ्युदय समाज व संस्कृति के नवजागरण की अलौकिक घटना है . शोषित वर्ग में आध्यात्मिक चेतना का प्रचार कर उनमे सद्संस्कारों और जीवन मूल्यों का जागरण कर राष्ट्र को सुसंगठित अवस्था तक पहुचाने का उनका प्रयास १८ वीं एवं १९ वीं शताब्दी की मत्वपूर्ण उपलब्धि है. इसका सारा श्रेय धार्मिक एवं सामाजिक चेतना के संत प्रवर गुरु घासीदास को है . सतनाम चेतना के विकास का परिणाम है. हम चेतना के कारण किसी चीज को जान, समझ व परख सकते है . युगांतर बाद सत्य के साथ नाम जुड़ गया और सतनाम एक अभिवादन का रूप ले लिया. अभिवादन हमारी मानवीय अभिब्यक्ति है और सतनाम केवल विशुद्ध रूप से मानवीय ब्यवहार है जो किसी चमत्कार पर नहीं वरन प्राकृतिक नियमो से संचालित है.
सतनाम धर्म के प्रचार हेतु गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों की यात्रायें की सतनाम के महत्व का प्रचार किया और समाज में आपसी वैमनष्य त्यागकर संगठित होने का उपदेश दिया. गुरु घासीदास jI का सतनाम sikhon की tarah एक aisi vichardhara है जो vaigyanik drishtikon से swayam shidh hota है.
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