बुधवार, 25 नवंबर 2020

सारंगढ़ राज को महामारी से बचाने हेतु युवराज नरेश चंद्र जी ने निभाई थी महती भूमिका।।

(स्व. राजा नरेशचन्द्र सिंह जी की 112वीं जन्मतिथि के अवसर पर)
सारंगढ़ रियासत को हैजा महामारी से बचाने के लिए प्रजाओं के मनसे इन्जेक्शन का डर हटाने की कहानी

एक समय था जब हैजा (Cholera) भारत की सबसे 
बड़ी जानलेवा महामारी था। इसकी एक एक खेप (या आज की भाषा में 'वेव') लाखों लोगों की जान ले जाती थी। वैक्सीन आने तक यही सिलसिला आम था। 
एक 'वेव' 1941 से 45 के बीच भी आयी थी। दूसरा विश्वयुद्ध उन दिनों जारी था। बंगाल के साथ साथ देश के अन्य इलाके भीषण अकाल और भुखमरी की चपेट में थे। देश की कृषि पैदावार फौजियों के लिये थी और बाकी इंगलैंड भेज दी गयी थी। डाॅक्टर और स्वास्थ्य कर्मी फौज में ले लिये गये थे। दवाईयां फौजी इस्तेमाल में खप जा रही थीं। 
देश में स्थिति भयावह थी। बंगाल में अनेक गांवों में गलियाँ लाशों से पटने की खबरें आम हो गयी थीं। सारंगढ़ राज्य भी इस महामारी की चपेट में था। 
श्री शरदचंद्र बेहार Sharad Behar मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव रहे हैं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ में हुआ और बचपन भी यहीं बीता। 1944 में वे 5 वर्ष के थे। वे दुखी मन से याद करते हैं इस दौरान उन्होंने अपने घर से एक दिन में तीन शव निकलते देखे थे। 
किन्तु कुछ मामलों में स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर थी। अनाज की उपलब्धता में कमी नहीं होने दी गयी थी। सारंगढ़ स्टेट के अपने डाॅक्टर और स्वास्थ्य कर्मी थे जिनकी मौज़ूदगी भी महत्वपूर्ण साबित हो रही थी। बाकी सारे विभागों के कर्मचारियों को भी हैजा नियंत्रण के काम में लगाया गया था। 
किन्तु सबसे बड़ा 'गेम-चेन्जर' साबित हुआ था हैजे का वैक्सीन। विश्व युद्ध के कारण पैदा हुई स्थितियों के बावज़ूद  अपने संबंधों का इस्तेमाल कर राजा जवाहिर सिंह सारंगढ़ राज्य के लिये वैक्सीन प्राप्त करने में सफल हुए थे। खड़गपुर में जहाँ इन दिनों प्रसिद्ध आय.आय.टी. है वहां उन दिनों अमरीकी एयरफोर्स का बेस हुआ करता था। खड़गपुर और नागपुर के बीच उड़ने वाले विमान सारंगढ़ में ईंधन लेने के लिए रुकते थे। अमरीकी सैनिकों के लिए खड़गपुर पहुंची सप्लाई में से पेनिसिलिन के इन्जेक्शन और हैजा वैक्सीन भारत के इस हिस्से में पहली बार विमानों के ज़रिये सारंगढ़ तक पहुंचे थे। (पेनिसिलिन की कहानी फिर कभी)। 
हैजा का वैक्सीन पहली बार प्राप्त करना ज़ाहिर है बहुत मुश्किल काम था। किन्तु इससे कहीं अधिक मुश्किल काम इसके आगे था, लोगों को यह वैक्सीन लगाने का। 
सारंगढ़ के शहरी और ग्रामीण, दोनों, इन्जेक्शन नाम की किसी चीज से परिचित नहीं थे। लोगों को वैक्सीन लगाने का जिम्मा दिया गया मैदान में अगुवाई कर रहे स्टेट के युवराज नरेशचन्द्र सिंह जी को। उनके नेतृत्व में स्टेट के डाॅक्टर और बाकी लोग नगर की गलियों में पैदल और गांवों में साइकिलों में जाया करते थे। टीम के लोग बोरों में भर कर ब्लीचिंग पाउडर और थैलियों में भर कर सल्फाग्युनाडीन पाउडर की एक-एक ग्राम की पुड़िया साथ ले कर चला करते थे। पानी की शुद्धता चाह कर भी संतोषजनक स्तर तक सुनिश्चित करना आसान नहीं था। देश की अधिकांश आबादी पेयजल के लिये तालाबों और आसानी से प्रदूषित हो जाने वाले खुले कुओं पर आश्रित थी। ( आज़ादी के बाद हैण्ड पम्प और बोरवेल का जैसे जैसे चलन बढ़ा, हैजा कम होता गया) 
थोड़ी थोड़ी दूरी पर लोगों को इकट्ठा किया जाता। उन्हें वैक्सीन के लाभ के बारे में समझाईश दी जाती। और फिर किसी सफल स्टेज-शो के क्लाइमेक्स के रूप में युवराज नरेशचन्द्र सिंह जी पूरी नाटकीयता के साथ अपनी बांह ऊपर करते, कौतूहल अपने चरम पर पहुंचता और डाॅक्टर उन्हें इन्जेक्शन की सुई चुभोता। यह सब किया जाता देखने वालों को आश्वस्त करने के लिये कि इन्जेक्शन एक सुरक्षित तरीका है। युवराज को लगाए जाने वाले इन्जेक्शन में वैक्सीन नहीं होता था यह बात उनके अलावा सिर्फ डाॅक्टर जानता था। लेकिन इसके बाद लोग सामने आ जाते और वैक्सीन ले लेते। इससे मृत्यु दर पर तेजी से अंकुश लगाने में बहुत सफलता मिली। लेकिन ऐसे हर दिन के अंत तक तीस से चालीस बार इन्जेक्शन की सुई चुभवाने के कुछ दिनों के बाद जब नरेशचन्द्र जी की बांह सूज गयी तो इस बात को गोपनीय रखा गया ताकि लोग इसे वैक्सीन का दुष्प्रभाव न समझ बैठें।  
1946 में पिता की मृत्यु के बाद नरेशचन्द्र सिंह जी सारंगढ़ के राजा बने। 1 जनवरी 1948 को राज्य का भारतीय गणराज्य में विलीनीकरण करने के बाद वे औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए। 1949 से वे मध्यप्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे तथा 1969 में राजनीति से सन्यास की घोषणा करने से पूर्व राज्य के पहले और अब तक के एकमात्र आदिवासी मुख्यमंत्री बने। 
राजा नरेशचन्द्र सिंह का जन्म रायपुर के राजकुमार काॅलेज में 21 नवम्बर 1908 के दिन हुआ था। आज उनकी 112वीं जन्मतिथि है। 

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डॉ परिवेश मिश्रा
गिरिविलास पैलेस 
सारंगढ़

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